आज के ही दिन 23 मार्च 1931 में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को क्रूर अंग्रेजी शासको ने फाँसी पर चढ़ा दिया था। यह दिन भारत के इतिहास का कईं बुरे दिनों में से एक है। दरअसल हमारे तीनों वीरों को फाँसी की सज़ा 24 मार्च सुबह 6 बजे दी जाने वाली थी। पर अंग्रेज़ी शासकों ने दबाव बनाया और फाँसी की सज़ा 11 घंटे पहले शाम ठीक 7:33 पर दे दी। भगत सिंह सिर्फ 23 साल के थे और उन्होंने इतनी छोटी सी उम्र में अंग्रेजी़ हुकूमत की जड़ें हिला कर रख दी थी। यही कारण था कि अंग्रेजों नें उन्हें 11 घंटे पहले फाँसी दे दी। क्योंकि उनको डर था कि कहीं उन तीनों की फाँसी की सज़ा माफ़ न हो जाये और वे तीनों फिर से उनका जीना मुश्किल न कर दे।
घर से दूर रहना किसको अच्छा लगता है,
पर वतन की मोहब्बत ने सब कुछ सिखा दिया,
जीना तो हम भी चाहते थे वतन के लिए,
पर देश प्रम ने मरना भी सिखा दिया।"
भारतवासी होने के नाते आपको हमारे वीर स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़ी किताबें पढ़नी चाहिए और फिल्में देखनी चाहिए ताकि आपको उनके बलिदान और उनकी सोच का पता लगे। उनकी बातों और उनकी सोच मैं देश प्रेम झलकता था क्योंकि उनके लहू की एक एक बूंद में देश के लिए प्यार था और यही कारण था कि वे देश के लिए अमर हो गए।
"वह कालकोठरियां पावन हो गई जहां हमारे वीर जवान कैद थे, वह छोटे-छोटे कंकड़ भी पावन हो गए जिन पर हमारे शहीद सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह के लहू की बूंदे गिरी थी, वह रस्सी जिससे उनको फांसी दी गई थी वह भी पावन हो गई।"
शहीद भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव से जुड़ी सभी तमाम चीजें चाहे वे कंकड़ हो जिन पर उन तीनों का लहू गिरा था या उनके जूते। सभी चीजें पंजाब सरकार के म्यूजियम में रखी हुई है। भगत सिंह का सपना सपना ही बनकर रह गया क्योंकि अंग्रेजों से आज़ादी तो मिल गई पर जैसा भारत भगत सिंह चाहते थे वह भारत अब तक नहीं बन पाया। बेरोजगारी, नशे और भ्रष्टाचार ने वह सपना पूरा नहीं होने दिया।
अगर आप भी अपने देश का विकास चाहते हैं और चाहते हैं कि शहीद भगत सिंह का यह सपना पूरा हो तो आपको तमाम देश में होने वाली गलत गतिविधियों के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी।हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत को सलाम।
जय हिंद।🇮🇳🇮🇳
जय भारत।🇮🇳🇮🇳
वंदे मातरम।🇮🇳🇮🇳

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